एकादशी कब है? जानिए व्रत तिथि, नियम और महत्व

एकादशी

हिन्दू धर्म में व्रतों और त्योहारों का एक विशेष स्थान है, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है एकादशी का। हर महीने दो बार आने वाली यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कई श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि एकादशी कब है, ताकि वे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से इस व्रत का पालन कर सकें। यह लेख आपको एकादशी के बारे में विस्तृत जानकारी देगा, जिसमें इसकी तिथि निर्धारण प्रक्रिया, महत्व, व्रत विधि और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न शामिल हैं।

एकादशी का व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का भी एक सशक्त माध्यम है। अक्सर लोग इंटरनेट पर “अगली एकादशी कब है” या “आज एकादशी कब है” जैसे सवाल खोजते हैं। हमारा उद्देश्य आपको इस पवित्र तिथि से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी एक ही स्थान पर प्रदान करना है, जिससे आप इस व्रत को सही ढंग से समझकर इसका पालन कर सकें।

हिन्दू धर्म में व्रतों और त्योहारों का एक विशेष स्थान है, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है एकादशी का। हर महीने दो बार आने वाली यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कई श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि एकादशी कब है, ताकि वे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से इस व्रत का पालन कर सकें। यह लेख आपको एकादशी के बारे में विस्तृत जानकारी देगा, जिसमें इसकी तिथि निर्धारण प्रक्रिया, महत्व, व्रत विधि और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न शामिल हैं।

एकादशी का व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का भी एक सशक्त माध्यम है। अक्सर लोग इंटरनेट पर “अगली एकादशी कब है” या “आज एकादशी कब है” जैसे सवाल खोजते हैं। हमारा उद्देश्य आपको इस पवित्र तिथि से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी एक ही स्थान पर प्रदान करना है, जिससे आप इस व्रत को सही ढंग से समझकर इसका पालन कर सकें।

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एकादशी क्या है? इसका अर्थ और महत्व

एकादशी

हिन्दू धर्म में व्रतों और त्योहारों का एक विशेष स्थान है, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है एकादशी का। हर महीने दो बार आने वाली यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कई श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि एकादशी कब है, ताकि वे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से इस व्रत का पालन कर सकें। यह लेख आपको एकादशी के बारे में विस्तृत जानकारी देगा, जिसमें इसकी तिथि निर्धारण प्रक्रिया, महत्व, व्रत विधि और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न शामिल हैं।

एकादशी का व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का भी एक सशक्त माध्यम है। अक्सर लोग इंटरनेट पर “अगली एकादशी कब है” या “आज एकादशी कब है” जैसे सवाल खोजते हैं। हमारा उद्देश्य आपको इस पवित्र तिथि से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी एक ही स्थान पर प्रदान करना है, जिससे आप इस व्रत को सही ढंग से समझकर इसका पालन कर सकें।

एकादशी का शाब्दिक अर्थ है “ग्यारहवीं”। यह हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक चंद्र मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आने वाली ग्यारहवीं तिथि होती है। इस प्रकार, एक महीने में दो एकादशी तिथियाँ आती हैं और साल भर में कुल 24 एकादशी होती हैं। कभी-कभी अधिकमास (मलमास) आने पर इनकी संख्या 26 तक हो जाती है।

  • शुक्ल पक्ष की एकादशी: यह अमावस्या के बाद आने वाली ग्यारहवीं तिथि है। इसे महीने के पहले पंद्रह दिनों के चक्र में गिना जाता है।
  • कृष्ण पक्ष की एकादशी: यह पूर्णिमा के बाद आने वाली ग्यारहवीं तिथि है। इसे महीने के दूसरे पंद्रह दिनों के चक्र में गिना जाता है।

 

प्रत्येक एकादशी का अपना एक विशेष नाम और महत्व होता है, जो उस महीने और उससे जुड़ी पौराणिक कथा पर निर्भर करता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा-पाठ करने और दान-पुण्य करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एकादशी की तिथि कैसे तय होती है?

एकादशी

यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि आखिर एकादशी कब है और इसकी तिथि कभी एक दिन तो कभी दो दिन क्यों दिखाई देती है। एकादशी की तिथि का निर्धारण हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्योदय और तिथि के समय के आधार पर होता है।

पंचांग ज्योतिष की एक जटिल गणना है, जिसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण का विचार किया जाता है। एकादशी तिथि का निर्धारण मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्योदय के समय कौन सी तिथि चल रही है।

  • तिथि का आरंभ और अंत: वैदिक ज्योतिष के अनुसार, एक तिथि सूर्योदय से शुरू होकर अगले सूर्योदय तक नहीं चलती। इसका समय घट-बढ़ सकता है। एक तिथि लगभग 19 से 26 घंटे तक की हो सकती है।
  • सूर्योदय व्यापिनी तिथि: नियम के अनुसार, व्रत के लिए वही तिथि मान्य होती है जो सूर्योदय के समय उपस्थित हो। यदि एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय तक रहती है, तो व्रत अगले दिन रखा जाता है।
  • स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय: एकादशी की तिथि को लेकर स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों में कभी-कभी मतभेद होता है।
    • स्मार्त: गृहस्थ लोग जो अन्य देवी-देवताओं को भी पूजते हैं, वे उस दिन एकादशी व्रत रखते हैं जिस दिन सूर्योदय के समय एकादशी तिथि होती है।
    • वैष्णव: वे संत और अनुयायी जो केवल भगवान विष्णु की उपासना करते हैं, वे ‘अरुणोदय’ काल में दशमी तिथि का किंचित भी अंश होने पर उस दिन एकादशी व्रत नहीं करते। वे उस दिन व्रत करते हैं, जिस दिन तिथि पूरी तरह से शुद्ध हो, भले ही वह द्वादशी युक्त क्यों न हो।

इसी कारण कभी-कभी पंचांग में दो दिन एकादशी दिखाई देती है – एक गृहस्थों (स्मार्त) के लिए और दूसरी वैष्णवों के लिए। सही तिथि जानने के लिए अपने स्थानीय पंचांग या कुल पुरोहित से संपर्क करना सबसे उत्तम रहता है।

पूरे वर्ष की एकादशी तिथियों के नाम और उनका महत्व

एकादशी

साल भर में आने वाली प्रत्येक एकादशी का एक विशेष नाम होता है और उससे जुड़ी एक अलग कथा होती है। यह जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना यह कि अगली एकादशी कब है। नीचे महीने के अनुसार एकादशियों के नाम दिए गए हैं:

चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)

  • पापमोचनी एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह साल की पहली एकादशी होती है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह व्रत व्यक्ति को जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति दिलाता है।
  • कामदा एकादशी (शुक्ल पक्ष): यह व्रत सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है। इसे करने से ब्रह्महत्या जैसे पापों से भी छुटकारा मिलता है।

वैशाख मास (अप्रैल-मई)

  • वरूथिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह सौभाग्य प्रदान करने वाली एकादशी है। इस व्रत को करने से कष्टों और दुखों का नाश होता है।
  • मोहिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष): भगवान विष्णु ने इसी दिन मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था। यह व्रत मोह-माया के बंधनों से मुक्त करता है।

ज्येष्ठ मास (मई-जून)

  • अपरा एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत अपार पुण्य देने वाला है। इसे करने से प्रेत योनि जैसे कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • निर्जला एकादशी (शुक्ल पक्ष): यह सभी एकादशियों में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन बिना जल पिए व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस एक एकादशी को करने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल मिल जाता है।

आषाढ़ मास (जून-जुलाई)

  • योगिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत समस्त पापों का नाश कर व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाता है, विशेषकर त्वचा संबंधी रोगों से।
  • देवशयनी एकादशी (शुक्ल पक्ष): इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास कहते हैं। इस अवधि में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।

श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)

  • कामिका एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत भक्तों की सभी कामनाओं को पूरा करता है और पापों से मुक्ति दिलाता है।
  • श्रावण पुत्रदा एकादशी (शुक्ल पक्ष): जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति की इच्छा होती है, उनके लिए यह व्रत बहुत फलदायी माना गया है।

भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर)

  • अजा एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत करने से व्यक्ति के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है।
  • परिवर्तिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष): इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में करवट बदलते हैं। इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर)

  • इंदिरा एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह एकादशी पितृ पक्ष में आती है और इसका व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पापांकुशा एकादशी (शुक्ल पक्ष): यह पाप रूपी हाथी को पुण्य रूपी अंकुश से वेधने वाली एकादशी है। यह मन की शुद्धि और पापों का नाश करती है।

कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर)

  • रमा एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह दिवाली से ठीक पहले आती है। इस व्रत के प्रभाव से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • देवउठनी/प्रबोधिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष): इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य पुनः आरंभ हो जाते हैं।

मार्गशीर्ष मास (नवंबर-दिसंबर)

  • उत्पन्ना एकादशी (कृष्ण पक्ष): मान्यता है कि इसी दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था, जिन्होंने मुर नामक राक्षस का वध करने में भगवान विष्णु की सहायता की थी।
  • मोक्षदा एकादशी (शुक्ल पक्ष): जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला है। इसी दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

पौष मास (दिसंबर-जनवरी)

  • सफला एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला माना जाता है।
  • पौष पुत्रदा एकादशी (शुक्ल पक्ष): यह व्रत भी श्रावण पुत्रदा एकादशी की तरह ही संतान प्राप्ति की कामना के लिए किया जाता है।

माघ मास (जनवरी-फरवरी)

  • षटतिला एकादशी (कृष्ण पक्ष): इस दिन तिल का छह प्रकार से (उबटन, स्नान, हवन, तर्पण, भोजन, दान) उपयोग किया जाता है। यह व्रत दरिद्रता और दुर्भाग्य को दूर करता है।
  • जया एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत व्यक्ति को भूत, प्रेत और पिशाच जैसी निकृष्ट योनियों से मुक्ति दिलाता है।

फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च)

  • विजया एकादशी (कृष्ण पक्ष): यह व्रत शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला है। मान्यता है कि भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले यह व्रत किया था।
  • आमलकी एकादशी (शुक्ल पक्ष): इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। यह व्रत स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अलग-अलग क्षेत्रों और पंचांगों में कुछ नामों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन व्रत का मूल उद्देश्य और तिथि निर्धारण का सिद्धांत एक ही रहता है।

एकादशी व्रत के आध्यात्मिक और स्वास्थ्य लाभ

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एकादशी का व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं।

  1. मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि: व्रत रखने से इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है। भोजन और सांसारिक भोगों से ध्यान हटाकर जब व्यक्ति ईश्वर में मन लगाता है, तो उसका मन शांत और निर्मल होता है। यह आत्म-अनुशासन और संकल्प शक्ति को बढ़ाता है।
  2. शारीरिक स्वास्थ्य: आयुर्वेद के अनुसार, महीने में दो बार उपवास करने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है। शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ (Toxins) बाहर निकलते हैं, जिससे शरीर की शुद्धि होती है। यह चयापचय (Metabolism) को सुधारने में भी मदद करता है।
  3. पापों का नाश: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के इस जन्म और पूर्व जन्मों के पापों का क्षय होता है।
  4. सात्विक जीवनशैली: एकादशी के दिन सात्विक भोजन करने, झूठ न बोलने, क्रोध न करने जैसे नियमों का पालन करने से व्यक्ति की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आता है। यह आदतें उसे एक बेहतर इंसान बनाती हैं।
  5. भगवान विष्णु की कृपा: एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन व्रत और पूजा करने वाले भक्त पर उनकी विशेष कृपा बरसती है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

एकादशी व्रत की सरल विधि (व्रत विधि)

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एकादशी का व्रत करने के लिए बहुत जटिल नियमों की आवश्यकता नहीं है। इसे कोई भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार कर सकता है। जब आप यह जान जाएं कि एकादशी कब है, तो इन सरल चरणों का पालन कर सकते हैं:

  • संकल्प: दशमी तिथि की शाम को सात्विक भोजन करें। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद पूजा स्थान पर घी का दीपक जलाकर हाथ में जल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें। संकल्प में कहें, “हे भगवान विष्णु, मैं आज एकादशी का व्रत आपकी कृपा प्राप्ति और अपने पापों के शमन के लिए कर रहा/रही हूँ। कृपया इसे निर्विघ्न पूरा करने में मेरी सहायता करें।”
  • पूजा: भगवान विष्णु या उनके किसी भी स्वरूप (जैसे श्री कृष्ण, श्री राम) की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें पीले फूल, फल, तुलसी दल, पंचामृत आदि अर्पित करें। धूप और दीप जलाकर आरती करें।
  • सात्विक आचरण: पूरे दिन मन को शांत रखें। किसी की निंदा न करें, झूठ न बोलें और क्रोध से बचें। अधिक से अधिक समय ईश्वर के ध्यान, भजन-कीर्तन या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र के जाप में बिताएं।
  • फलाहार: यदि आप निर्जला व्रत नहीं कर सकते, तो फलाहार करें। इसमें फल, मेवे, दूध, दही और कुछ विशेष व्रत के खाद्य पदार्थ (जैसे सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, साबूदाना) ले सकते हैं। इस दिन अन्न (चावल, गेहूं, दाल) का सेवन वर्जित है।
  • दान-पुण्य: द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
  • पारण (व्रत खोलना): व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय के भीतर ही किया जाता है। पारण का सही समय जानना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गलत समय पर पारण करने से व्रत का फल नहीं मिलता। पारण का समय भी आपको पंचांग से पता चल जाएगा। पारण आमतौर पर सात्विक भोजन (जैसे चावल) से किया जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न: एकादशी का व्रत कौन कर सकता है?

उत्तर: आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक का कोई भी स्वस्थ स्त्री-पुरुष इस व्रत को कर सकता है। शास्त्रों में सभी के लिए इस व्रत का विधान बताया गया है।

उत्तर: बीमारी, वृद्धावस्था या किसी अन्य मजबूरी की स्थिति में पूर्ण उपवास रखना संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। यदि वह भी संभव न हो, तो कम से कम इस दिन चावल और अन्न का सेवन न करें और भगवान का स्मरण करें। यात्रा के दौरान भी मानसिक रूप से व्रत का पालन किया जा सकता है।

उत्तर: हाँ, विवाहित और अविवाहित दोनों ही महिलाएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा से कर सकती हैं। इससे उन्हें सौभाग्य और सुख की प्राप्ति होती है।

उत्तर: केवल निर्जला एकादशी को छोड़कर अन्य सभी एकादशियों में जल और फल का सेवन किया जा सकता है। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्रत का प्रकार चुनें।

उत्तर: पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया और उनके अंश पृथ्वी में समा गए। वही अंश जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल का सेवन करना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है, इसलिए इस दिन चावल खाना वर्जित है।